Chanakya Neeti

Best Chanakya Quotes In Hindi – आचार्य चाणक्य के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार

“विद्या को चोर भी नहीं चुरा सकता।”  – चाणक्य

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“आदमी अपने जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान होता है।” – चाणक्य

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“ईश्वर मूर्तियों में नहीं है। आपकी भावनाएँ ही आपका ईश्वर है। आत्मा आपका मंदिर है।” – चाणक्य

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“जैसे एक बछड़ा हज़ारो गायों के झुंड मे अपनी माँ के पीछे चलता है।
उसी प्रकार आदमी के अच्छे और बुरे कर्म उसके पीछे चलते हैं।” – चाणक्य

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“सबसे बड़ा गुरु मंत्र, अपने राज किसी को भी मत बताओ। ये तुम्हे खत्म कर देगा।” – चाणक्य

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“पुस्तकें एक मुर्ख आदमी के लिए वैसे ही हैं, जैसे एक अंधे के लिए आइना।” – चाणक्य

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“आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है।” – चाणक्य

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“गरीब धन की इच्छा करता है, पशु बोलने योग्य होने की, आदमी स्वर्ग की इच्छा करते हैं और धार्मिक लोग मोक्ष की।” – चाणक्य

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“संकट में बुद्धि भी काम नहीं आती है।” – चाणक्य

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“जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।” – चाणक्य

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“किसी भी कार्य में पल भर का भी विलम्ब ना करें।” – चाणक्य

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“दुर्बल के साथ संधि ना करें।” – चाणक्य

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“किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है।” – चाणक्य

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“संधि करने वालों में तेज़ ही संधि का होता है।” – चाणक्य

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“कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है।” – चाणक्य

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“संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहें।” – चाणक्य

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“शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें।” – चाणक्य

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“शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।” – चाणक्य

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“भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दु:खदायी हो जाता है।” – चाणक्य

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“चोर और राज कर्मचारियों से धन की रक्षा करनी चाहिए।” – चाणक्य

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“पृथ्वी सत्य पे टिकी हुई है। ये सत्य की ही ताक़त है, जिससे सूर्य चमकता है और हवा बहती है।
वास्तव में सभी चीज़ें सत्य पे टिकी हुई हैं।” – चाणक्य

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“फूलों की खुशबू हवा की दिशा में ही फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई चारों तरफ फैलती है।” – चाणक्य

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“जैसे एक सूखा पेड़ आग लगने पे पुरे जंगल को जला देता है। उसी प्रकार एक दुष्ट पुत्र पुरे परिवार को खत्म कर देता है।” – चाणक्य

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“शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।” – चाणक्य

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“सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।” – चाणक्य

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“अन्न के सिवाय कोई दूसरा धन नहीं है।” – चाणक्य

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“भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।” – चाणक्य

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“विद्या ही निर्धन का धन है।” – चाणक्य

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“शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।” – चाणक्य

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“अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है।” – चाणक्य

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“सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।” – चाणक्य

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“किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी शत्रु का साथ ना करें।” – चाणक्य

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“आलसी का ना वर्तमान होता है, ना भविष्य।” – चाणक्य

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“सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।” – चाणक्य

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“सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए।” – चाणक्य

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“समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में निर्विघ्न नहीं रहता।” – चाणक्य

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“दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।” – चाणक्य

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“चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते।” – चाणक्य

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“पहले निश्चय करिए, फिर कार्य आरम्भ करें।” – चाणक्य

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“भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है।” – चाणक्य

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“अर्थ और धर्म, कर्म का आधार है।” – चाणक्य

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“शत्रु दण्ड नीति के ही योग्य है।” – चाणक्य

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“कठोर वाणी अग्नि दाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुँचाती है।” – चाणक्य

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“व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।” – चाणक्य

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“शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें।” – चाणक्य

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“अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता ना करें।” – चाणक्य

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“मंत्रणा को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्ध होता है।” – चाणक्य

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“योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।” – चाणक्य

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“एक अकेला पहिया नहीं चला करता।” – चाणक्य

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“अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का ना होना अच्छा है।” – चाणक्य

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“जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है।” – चाणक्य

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“स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है।” – चाणक्य

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“धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।” – चाणक्य

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“दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है।” – चाणक्य

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“आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।” – चाणक्य

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“मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।” – चाणक्य

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“दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।” – चाणक्य

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“दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।” – चाणक्य

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“कठिन समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए।” – चाणक्य

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“कल का कार्य आज ही कर लें।” – चाणक्य

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“सुख का आधार धर्म है।” – चाणक्य

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“अर्थ का आधार राज्य है।” – चाणक्य

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“राज्य का आधार अपनी इन्द्रियों पर विजय पाना है।” – चाणक्य

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“प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेता विहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।” – चाणक्य

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“वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है।” – चाणक्य

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“वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।” – चाणक्य

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“ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।” – चाणक्य

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“आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।” – चाणक्य

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“जहाँ लक्ष्मी (धन) का निवास होता है, वहाँ सहज ही सुख-सम्पदा आ जुड़ती है।” – चाणक्य

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“इन्द्रियों पर विजय का आधार विनम्रता है।” – चाणक्य

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“प्रकृति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।” – चाणक्य

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“शासक को स्वयं योगय बनकर योगय प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।” – चाणक्य

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“सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए।” – चाणक्य

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“स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दुबारा उन पर विचार करें।” – चाणक्य

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“अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।” – चाणक्य

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“ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाएँ।” – चाणक्य

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“समस्त कार्य पूर्व मंत्रणा से करने चाहिएं।” – चाणक्य

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“विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त ना रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।” – चाणक्य

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“लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है।” – चाणक्य

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“मन्त्रणा की संपत्ति से ही राज्य का विकास होता है।” – चाणक्य

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“भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।” – चाणक्य

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“मंत्रणा के समय कर्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।” – चाणक्य

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“मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।” – चाणक्य

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“राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनों का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है।” – चाणक्य

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“कार्य-अकार्य के तत्व दर्शी ही मंत्री होने चाहिए।” – चाणक्य

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“अप्राप्त लाभ आदि राज्यतंत्र के चार आधार हैं।” – चाणक्य

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“आलसी राजा अप्राप्त लाभ को प्राप्त नहीं करता।” – चाणक्य

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“शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।” – चाणक्य

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“राज्यतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते हैं।” – चाणक्य

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“राजतंत्र से संबंधित घरेलू और बाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है।” – चाणक्य

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“राजनीति का संबंध केवल अपने राज्य को समृद्धि प्रदान करने वाले मामलों से होता है।” – चाणक्य

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“ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए।” – चाणक्य

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“जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते हैं।” – चाणक्य

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“कामी पुरुष कोई कार्य नहीं कर सकता।” – चाणक्य

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“पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोक निंदा का कारण बनता है।” – चाणक्य

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“धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।” – चाणक्य

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“दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।” – चाणक्य

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“दंड का भय ना होने से लोग अकार्य करने लगते हैं।” – चाणक्य

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“दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।” – चाणक्य

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“आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है।” – चाणक्य

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